रिश्तों की भी सच्चाई दीवारों जैसी हैं,
इक इक ईंट से बनती है,
पर विश्वाश की छत ना हो तो
दीवारें अक्सर खंडहर सी बन जाती है
इक इक ईंट से बनती है,
पर विश्वाश की छत ना हो तो
दीवारें अक्सर खंडहर सी बन जाती है
धुंधले से होते जा रहे हैं सपने हवाओं में कही, शायरों के लफ़्ज़ अब हलके हो चले है...
Simplicity of the writing is amazing...speaks volumes about life.Hope to see more
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