Saturday, 29 April 2017

दो बोरियाँ आमों की भिजवायी थी काशिद के हाथ,
लौट आया वो भरी दुपहरिया बिन दिए सौग़ात 
पूछा क्यों किए ये बदमिज़ाजी,
सुनाई दास्ताँ होके उसने जज़्बाती..
कमबख़्त ने शोर बहुत सुना था गाँव में,
मुसाफ़िर दौड़ रहे थे ख़ूनी पाँव से..
ख़बर फैली थी आयी है चमकीली ड़ायन,
लाती है रौशनी गहरी ढलती शाम में..
हम कहे चल पगले,
ले तू भी दो घूँट मार ले और सुन,

नयी नयी बिजली आयी हैं गाँव में...

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