ज़िन्दगी दो पालों में सुस्त पड़ी है ,
मनमौजी कहीं दरिया किनारे खड़ी है..
पालों में उथलपुथल का माहौल है,
मन तो संगीत की गहराई में बेमिसाल है,
पालों की बेड़िया किसी औऱ की सुनती है,
आज़ादी तो बर्फ के पहाड़ो की भ्रमन्ति है..
शायद जरुरी है इन पालों में हो आने का,
अलबत्ता मायने क्या होंगे पंछी बन जाने का...
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