नींद से जगाया जो तूने,
मेरे कुछ ख़्वाब मार दिए,
तनहाइयों से परे जो थे पनपे,
ऐसे कई अल्फ़ाज़ मार दिए,
दिलासा ना दिला के सुबह हो गयी,
ऐसे ही ना जाने कितने ही,
इशकबाज मार दिए...
धुंधले से होते जा रहे हैं सपने हवाओं में कही, शायरों के लफ़्ज़ अब हलके हो चले है...